नई दिल्ली:- भारी उद्योग तथा सार्वजनिक उद्यम मंत्रालय के अंतर्गत सार्वजनिक उद्यम विभाग द्वारा आज नई दिल्ली में केन्द्रीय सार्वजनिक उद्यमों के कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व कार्यक्रम के अंतर्गत आकांक्षी जिलों के परिवर्तन पर दो दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। कार्यशाला का उद्घाटन नीति आयोग के सीईओ श्री अमिताभ कांत ने किया।
यह कार्यशाला नीति आयोग, स्वास्थ्य सेवा के लिए संबंधित मंत्रालय विभाग, पौष्टिकता तथा स्कूली शिक्षा कार्यक्रम, आकांक्षी जिलों के जिला मजिस्ट्रेटों/जिला कलेक्टरों, आकांक्षी जिलों के केन्द्रीय /राज्यों के प्रभारी अधिकारियों तथा केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के वरिष्ठ कार्यकारी अधिकारियों को एक मंच पर आने की दिशा में एक कदम है। देश के विभिन्न भागों में स्वास्थ्य देखभाल, पौष्टिकता तथा स्कूल शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाली कुछ गैर-सरकारी एजेंसियां भी भाग ले रही हैं।
इस अवसर पर नीति आयोग के सीईओ ने कहा कि स्वास्थ्य देखभाल, पौष्टिकता तथा स्कूल शिक्षा के क्षेत्र में आकांक्षी जिलों का कार्य प्रदर्शन अच्छा नहीं होने से ये जिले पिछड़े हैं। इस कार्य को केवल सरकार, केन्द्रीय सरकारी क्षेत्र के उद्यम तथा संकल्पबद्ध एनजीओ मिशन मोड में कर सकते हैं ताकि 115 जिलों को पिछड़ेपन से बाहर निकाला जाए। अभी नीति आयोग 112 आकांक्षी जिलों में हितधारकों के साथ काम कर रहा है। पश्चिम बंगाल इसमें भाग नहीं ले रहा है।नीति आयोग के सीईओ ने बताया कि इन आकांक्षी जिलों के लिए छह क्षेत्रों (स्वास्थ्य देखभाल, पौष्टिकता, कृषि, जल संसाधन, वित्तीय समावेश और कौशल विकास) में कार्य प्रदर्शन के 49 संकेतकों की पहचान की गई है। इन आकांक्षी जिलों में किए जा रहे कार्यों की निगरानी के लिए “championsofchange.gov.in” शीर्षक डैशबोर्ड बनाया गया है। उन्होंने बताया कि नीति आयोग ने गंभीर अंतरों को पाटने की परियोजना बनाने में जिलों की सहायता के लिए परियोजना निगरानी इकाई (पीएमयू) की स्थापना की है। पीएमयू में भारत के क्षेत्र विशेष के विशेषज्ञ तथा यूएनडीपी और एडीबी जैसी विदेशी एजेंसियां होंगी। पीएमयू केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमियों तथा जिले के अधिकारियों को परियोजना प्रस्ताव तैयार करने में मदद और समर्थन देगी और कार्य योजना बनाएगी। नीति आयोग सीएसआर पोर्टल बनाने की प्रक्रिया में है। यह शीघ्र कार्य करने लगेगा। इस पोर्टल में आकांक्षी जिलों की परियोजनाओं का विस्तृत ब्यौरे स्वीकृत और जारी धन राशि के विवरण के साथ अपलोड किए जा सकते हैं।
नीति आयोग के मुख्यकार्यकारी अधिकारी (सीईओ) ने आग्रह किया है कि केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (सीपीएसई) की नैगमिक सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) गतिविधियों को आकांक्षी जिले के शैक्षिक संस्थानों के शिक्षण परिणामों में सुधार लाने के लिए प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि केवल प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से शिक्षा के क्षेत्र में तथा खासतौर से भाषाओं व विज्ञान विषयों में निर्णायक प्रगति की जा सकती है। स्वास्थ्य क्षेत्र के बारे में नीति आयोग के सीईओ ने कहा कि आधुनिक जिला अस्पतालों और रेफरल इकाइयों के सृजन पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने सीपीएसई से आग्रह किया कि वे स्वास्थ्य सेक्टर में कोई भी दोयम दर्जे का काम न करें और विश्व स्तरीय सुविधाएं बनायी जानी चाहिए।नीति आयोग के सीईओ ने आग्रह किया कि 25 सीपीएसई के सीएसआर मुखियाओं का कार्यसमूह बनाया जाए, जो सार्वजनिक उपक्रम विभाग के सचिव के मार्गनिर्देशन में काम करे तथा आकांक्षी जिलों की चुनौतियों का समाधान करने के लिए लगातार बैठकें सुनिश्चित करे। उन्होंने कहा कि नीति आयोग सार्वजनिक उपक्रम विभाग और सीपीईएसई के प्रयासों का हर संभव समर्थन करेगा।कार्यशाला के दौरान जिला मजिस्ट्रेटों/ जिलाधिकारियों, सीपीएसई के सीएमडी तथा सम्बंधित कार्यान्वयन एजेंसियों ने स्वास्थ्य सुविधा, पोषण और स्कूली शिक्षा जैसे तीन विषयों पर प्रस्तुतिकरण दिया। प्रस्तुतिकरण में सभी ने अपने उत्कृष्ट व्यवहारों, कार्यान्वयन के मुद्दों और उनकी कठिनाइयों/चुनौतियों के बारे में जानकारी दी। इसका उद्देश्य आकांक्षी जिलों में सीएसआर गतिविधियों के बारे में उत्कृष्ट व्यवहारों तथा अड़चनों को दूर करने के विषय में चर्चा करना था, ताकि आकांक्षी जिलों के विकास में तेजी आए। आयोजन स्थल पर सीपीएसई ने एक प्रदर्शनी भी लगाई थी, जिसके जरिये कार्यान्वयन एजेंसियों ने अपनी सीएसआर परियोजनाएं/गतिविधियां पेश कीं।सार्वजनिक उपक्रम विभाग ने दिसंबर, 2018 में सीपीएसई के लिए दिशानिर्देश जारी किये थे कि वे आकांक्षी जिलों के उल्लेख के साथ प्रतिवर्ष एक खास विषय पर अपनी सीएसआर निधियों का 60 प्रतिशत खर्च करें। वर्ष 2019-20 के लिए विषयवस्तु स्वास्थ्य, पोषण और स्कूली शिक्षा है जबकि वर्ष 2018-19 में विषयवस्तु स्वास्थ्य और स्कूली शिक्षा थी।
हर वर्ष सीपीएसई का औसत सीएसआर खर्च 3500 करोड़ रुपये है और इस कार्य का 60 प्रतिशत 2100 करोड़ रुपये के बराबर है। यह रकम आकांक्षी जिलों में स्वास्थ्य, पोषण और स्कूली शिक्षा क्षेत्रों में महत्वपूर्ण सुधार ला सकता है। सार्वजनिक उद्यम विभाग महत्वाकांक्षी जिलों में सीएसआर गतिविधियां चलाने के लिए कार्यशालाओं, सेमिनारों और प्रशिक्षण सत्रों के माध्यम से सीपीएसई को लगातार संवेदी बना रहा है। विभाग के प्रयासों के कारण सीपीएसई ने जिला/स्थानीय प्रशासन के सहयोग से लगभग सभी महत्वाकांक्षी जिलों के सहयोग से सीएसआर परियोजनाओं को शुरू किया है।
महत्वाकांक्षी जिला कार्यक्रम की जनवरी, 2018 में प्रधानमंत्री द्वारा शुरूआत की गई थी। इसका उद्देश्य देश के अपेक्षाकृत कम विकसित 112 जिलों के सामाजिक-आर्थिक संकेतकों में सुधार लाना है। यह सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास के मार्गदर्शक सिद्धांत के माध्यम से 2020-22 के नये भारत के विजन को प्राप्त करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण पहल है। नीति आयोग इस कार्यक्रम को चलाने के लिए एक नोडल एजेंसी है, जो केंद्र सरकार, राज्यों और जिला स्तर की विभिन्न एजेंसियों के बीच सहयोग कर रही है।