विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी) युवा वैज्ञानिक अनुदान के सफल समापन पर डॉ. मल्लिका जोन्नलगड्डा के लिए मुख्य उद्देश्य मेल्टल चट्टानों के पेट्रोलॉजिकल और जियोकेमिकल विशेषताओं पर अपने शोध कार्य को जारी रखने के लिए समर्थ बनना था। वह अपनी इस इच्छा को पूरा करने के लिए हरसंभव विकल्प तलाश रही थीं।विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) की महिला वैज्ञानिक ए (डब्ल्यूओएस- ए) योजना के रूप में उन्हें एक अच्छा अवसर दिखा। उन्होंने इस उम्मीद के साथ इस योजना के लिए आवेदन कर दिया कि उन्होंने अनुसंधान के लिए जो विषय चुना है, वह काफी महत्वपूर्ण था और उसके लिए ध्यान केंद्रित करते हुए काम करने की आवश्यकता थी। इस योजना के लिए उनके चयन ने उन्हें खुद पर भरोसा करने में मदद की और उनके आत्मविश्वास को एक नई ऊंचाई दी।
डॉ. मल्लिका जोन्नलगड्डा पुणे के सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के इंटरडिसिप्लिनरी स्कूल ऑफ साइंस (आईडीएस) में सहायक प्रोफेसर हैं। साथ ही वह ऑस्ट्रेलिया के यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न के करीबी सहयोग के साथ आईडीएस में चलाए जा रहे पृथ्वी विज्ञान कार्यक्रम से संबद्ध हैं।डॉ. जोन्नलगड्डा कहती हैं, ‘डीएसटी डब्ल्यूओएस-ए योजना एक अलग प्रकार की योजना है और मैं चाहती हूं कि तमाम महिलाएं इस योजना के जरिये अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकती हैं। मेरा अनुभव काफी सकारात्मक रहा है और व्यक्तिगत एवं पेशेवर दोनों लिहाज से प्राप्त अवसर काफी संतोषजनक थे। कुल मिलाकर इस योजना ने मुझे देश में अनुसंधान के मेरे क्षेत्र में अग्रणी बना दिया।
डॉ. जोन्नलगड्डा का काम भारत के पश्चिमी भाग में हिमालय की सीमाओं से लेकर कच्छ बेसिन तक विस्तृत विविध भूगर्भीय संरचनाओं से लेकर मेल्टल चट्टानों के पेट्रोलॉजिकल और जियोकेमिकल विशेषताओं पर केंद्रित है। उनके डॉक्टरेट अनुसंधान ने प्रोग्रेड और रेट्रोग्रेड मेटामॉर्फिज्म से संबंधित प्रमुख समस्याओं को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इससे अल्ट्रा-हाई-प्रेशर मेटामॉर्फिज्म के समग्र विषय में नए सिरे से अभिरुचि पैदा हुई है।
महिला वैज्ञानिक योजना के तहत परिणामों को प्रकाशन के लिए भेजा गया है। इसमें एक्लोजाइट के विस्तृत आइसोटोपिक जियोकेमिस्ट्री को पहली बार शामिल किया गया है। डॉ. जोन्नलगड्डा एसपीपीयू में मेंटल पेट्रोलॉजी समूह से जुड़ी हैं जो 2009 से ही हिमालय के ओरोजेनिक ओपियोलाइट्स पर काम कर रहा है।
लद्दाख में हिमालयन ओफियोलाइट अनुक्रमों से अल्ट्रामैफिक एवं मैफिक चट्टानों के पेट्रोलॉजिकल और जियोकेमिकल विशेषताओं का अध्ययन करने के लिए तमाम राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय परियोजनाओं से जुड़ने के साथ-साथ उन्होंने विस्थापन के इतिहास और स्पॉन्टैंग ऑपियोलाइट अनुक्रम की उत्पत्ति और टीएसओ मोरैरीक्लोजाइट से उसके संबंध को समझने में एक नई रुचि पैदा की है।
डॉ. जोन्नलगड्डा ने 2018 में सीएनआरएस और सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय (एसपीपीयू) के बीच सहयोग के माध्यम से फ्रांस के जियोसाइंसेज एनवायरर्नमेंट टूल्स में फेलो के तौर पर 2 महीने बिताए थे। उन्होंने प्रशिक्षण और क्लीन लैब प्रोटोकॉल का अनुभव प्राप्त किया। वह डॉ. मैथ्यू बेनॉइट और डॉ. माइकल ग्रेग्रोइर की देख-रेख में एसआर-एनडी समस्थानिक विश्लेषण के लिए इलेक्ट्रॉन प्रोब माइक्रो एनालाइजर (ईपीएमए), एलए-आईसीपीएमएस, टीआईएमएस जैसे उन्नत विश्लेषणात्मक उपकरणों के संचालन में महारत हासिल की।वह कहती हैं कि डीएसटी महिला वैज्ञानिक योजना ने उन्हें एक शुरुआती करियर शोधकर्ता से एक क्षमतावान वैज्ञानिक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई वरिष्ठ प्रोफेसरों और वैज्ञानिकों की धारणा और बर्ताव को बदल दिया है। डॉ. जोन्नलगड्डा ने कहा, ‘कुछ महिलाओं ने काम के लिए मेरे शोध का क्षेत्र चुना है जिसमें पृथ्वी विज्ञान का मूलभूत पहलू शामिल है। इस योजना ने मेरे विश्वास को बढ़ा दिया है कि काम जारी रखा जाना चाहिए और सरकार ने अनुसंधान में लैंगिक असमानता को दूर करने की आवश्यकता को पहचाना है। इसी परियोजना के माध्यम से मैंने अध्ययन के लिए चुने गए क्षेत्र में खुद को स्थापित किया है।’वह कहती हैं, ‘इस परियोजना ने अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और संयुक्त प्रयोगशाला कार्य के लिए तमाम दरवाजे खोलने में मदद की जिससे मुझे नए कौशल हासिल करने में मदद मिली। इस ने मुझे प्रतिष्ठित सीएनआरएस – जीईटी संस्थान के साथ अंतरराष्ट्रीय साझेदारी के तहत विजिटिंग फेलोशिप हासिल करने में मदद की, जो कि मेरे अध्ययन के क्षेत्र से संबंधित भू-वैज्ञानिक समस्याओं पर काम करने वाला फ्रांस का एक प्रमुख संस्थान है। इस परियोजना के तहत किए गए काम के आधार पर कई अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं ने सम्पर्क किया और एक नई एशियाई पत्रिका के संपादकीय बोर्ड में शामिल होने का निमंत्रण भी मिला। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उपरोक्त योजना ने सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के स्तर पर एक टेन्योर ट्रैक फैकल्टी के रूप में मेरी नियुक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।’